"दिल मेरा तोड़ो ना..." ..ये एक गाना था जब में छोटा था, रेडियो में सुनाया जाता था॥ में छोटा था, में बहुत confused था की ये तोड़ने को पूछ रही या मत थोड़ो बोल रही... :)
एक advertisement आ रही... हर चीज को जोड़ने वाली adhesive के बारे में...आप भी देखे..सुने होंगे... :)
...कोई ये कभी सोचे, की ये तोड़ने की आदत कब से लगी हुयी है मन में...? ..जब हम छोटे थे..ज्यादातर बच्चे किसी चीज को जोड़ने में दिल्चुस्प नहीं होते थे॥ सिर्फ तोड़ने में...तोड़ने के बाद कैसे जोड़ना है...ये मम्मी पापा का काम है॥
लेकिन..जब हम मम्मी/पापा बनेंगे....तब कौन सिखाएगा ये जोड़ने का काम....?
जब में छोटा था..दादी कहती थी की बेटा..जो काम पे नतीजा बुरा होगा...वो काम नहीं करना॥
जब हम बड़े होंगे....किसी ने दिल दिया ..प्यार किया... ये भी..हमें इतना एहसास नहीं दिलाता..दिल देना क्या चीज है...!!!
जब हम किसी को दिल देके बीतेंगे... किसीने हमारे दिल को..प्यार को टुकराये...तभी...हमें ये एहसास होगा..तोड़ने का मतलब क्या है...अंजाम क्या है॥
जब दिल टूटगया ...तब मम्मी, पापा,..दादी..कोई नहीं होंगे..की हमें समझाए..कैसे जोड़ना है...हमारे आंसू भी adhesive का काम नहीं करेंगे...
दादी की बात याद आती रहेगी..."किसी काम का अंजाम बुरा हो..वो..किसी को दुःख पहुंचे..वो..काम कभी मत करना..बेटा..सब लोगों से प्यार करना..नफरत नहीं करना..नफरत करना अछि बात नहीं..."
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